Friday, December 26, 2008

संत समाज के सुमेरु व महान व्यक्तित्व: प्रभुदत्त ब्रह्मचारी



श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी। हे नाथ नारायण वासुदेव॥ मंत्र के द्रष्टा संत प्रभुदत्तब्रह्मचारी आध्यात्म के पुरोधा थे। संस्कृत, हिंदी, ब्रजभाषा के प्रकाण्ड विद्वान ब्रह्मचारी जी साधना, समाज सेवा, संस्कृति, साहित्य, स्वाधीनता, शिक्षा के समर्पित पोषक एवं प्रेरणा-स्रोत थे। बलदेव, बरसाना, खुर्जा, नरवरएवं वाराणसी में उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया। स्वामी करपात्रीजी एवं साहित्यकार कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर उनके सहपाठी थे। उनका संकीर्तन में अटूट लगाव था। वृन्दावन में यमुना के तट पर वंशीवट के निकट संकीर्तन भवन की स्थापना की तो प्रयाग राज प्रतिष्ठानपुरझूसीमें अनेकानेक प्रकल्पों के साथ संकीर्तन भवन प्रतिष्ठित किया। वसंत विहार दिल्ली में संकीर्तन भवन में हनुमान जी की विशालकाय मूर्ति पधारने की योजना का संकल्प लिया, क्रियान्वित किया किन्तु मूर्ति 120फुट ऊंची उनके निधन के पश्चात ही प्रतिष्ठित हो पाई।

झूसीप्रवास में वर्षो उपवास के साथ गंगा मैया के जल में प्रविष्ट हो समाधिस्थ स्थिति में गायत्री महामंत्र का पारायण किया था। वृंदावन में वस्त्र के स्थान पर टाट का प्रयोग कर यमुना पार सहस्त्रों गायों को साथ लेकर गोचारणकिया। पूज्य ब्रह्मचारी जी सिद्धांतों को आचरण में लाकर प्रस्तुत करने वाले प्रेरक व्यक्तित्व के धनी थे।

एक बार गोरक्षाके प्रकरण पर वे वृंदावन में शासन के विरुद्घ आमरण अनशन पर बैठ गए। देश के लाखों लोग उनके साथ हो लिए। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के आग्रह एवं आश्वासन पर ही उन्होंने रस-पान किया था। स्वाधीनता आंदोलन में वे पं.जवाहर लाल नेहरू के साथ जेल में रहे थे। स्वाधीनता संग्राम काल में उनकी पत्रकारिता बेजोड थी। उन्होंने कई पन्नों का संपादन तथा प्रकाशन किया एवं सदैव खादी का प्रयोग किया। पूज्य ब्रह्मचारी जी ने अपने कर्म, धर्म, आचरण एवं लेखनी के द्वारा समाज को जो कुछ भी दिया वह लौकिक परिवेश में अलौकिक ही है। वे आशु कवि थे। श्रीमद्भागवत, गीता,उपनिषद, ब्रह्मसूत्र आदि अत्यंत दुरूह ग्रंथों की सरल सुबोध हिंदी में व्याख्या कर भक्तवरगोस्वामी तुलसीदास के अनुरूप जनकल्याण कार्य किया। उन्होंने श्री भागवत को 118भागों में जन सामान्य की सरल भाषा में प्रस्तुत किया। उनके रचित ब्रजभाषा के सुललित छन्द (छप्पय) बोधगम्यएवं गेय है, जिनका आज भी स्थान-स्थान पर वाद्य-वृंद संगति के साथ पारायण कर लोग आनंदित होते हैं। इनके अतिरिक्त नाम संकीर्तन महिमा, शुक (नाटक), भागवत कथा की वानगी,भारतीय संस्कृति एवं शुद्धि, वृंदावन माहात्म्य, राघवेंद्र चरित्र, प्रभु पूजा पद्धति, कृष्ण चरित्र, रासपंचाध्यायी,गोपीगीत,प्रभुपदावली,चैतन्य चरितावली आदि लगभग 100अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का प्रणयन किया।ऐसे आध्यात्मिक युग पुरुष का जन्म जनपद अलीगढ के ग्राम अहिवासीनग्रमें सम्वत्1942की कार्तिक कृष्ण अष्टमी (अहोई आठें)को परम भागवत पं.मेवाराम जी के पुत्र रूप में हुआ। विदुषी माता अयुध्यादेवी से संत सुलभ संस्कार प्राप्त कर आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण किया। सम्वत्2047की चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को भौतिक देह का त्याग वृन्दावन में कर गोलोकधाम प्रविष्ट हो गए।

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